कुछ और है
Jan 11, 2023
तन्हाइयो का मज़ा ही कुछ और है,
सोचते रहने का दर्द ही कुछ और है
बिखरा हुआ है सब कुछ, समेटना कुछ और है, एक आसमाँ है, ज़मीन है.. क्या इसके बाद भी कुछ और है?
वैसे परिंदो की दास्ताँ को कोई क्या समझे
असल में वो बात नहीं है ,ये बात ही कुछ और है
-मोहित